السبت، 20 مايو 2023

اعتدتي غيابي / عمر طه اسماعيل

 ها قد اعتدتي 

الغياب.. 

صار سهلا.. 

ان تجافي.. 

دون حرف ٍ.. 

أو عتاب..

دون ان.. 

تبكي بدوني.. 

آه.. 

يادنيا العجاب..

لاتبالي.. 

صار قلبي.. 

مرتعا ً.. 

لكل انواع..

العذاب.. 

وفي احداق العيون..

صرت معتادا كثيرا.. 

ان اواسي.. 

دمع عين ٍ.. 

كالسحاب..

لاتبالي.. 

لست انساك ِ.. 

للحظة.. 

أنت ِ ظلي.. 

في ذهاب.. 

او إياب..

مثلما.. 

اعتدتي غيابي.. 

صار حزني جاثما.. 

بين الضلوع.. 

مثل نوب


ات.. 

النحاب..


عمر طه اسماعيل

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