الثلاثاء، 17 مايو 2022

مشتاق بقلم عمر طه اسماعيل

 مشتاق اني.. 

لا اكثر.. 

قلبي يتهاوى.. 

يتفطر... 


لايغفوا جفني.. 

في ليل .. 

لايهدأ شوقي .. 

او يفتر.. 

وسياط الشوق.. 

كم هي مؤلمة.. 

ان جاءت حينا.. 

لاتغفر.. 

ودموع الشوق.. 

لو انسابت .. 

لاتعرف مهلا.. 

او تغفر.. 

وانت ٍ.. 

يااحلى من شهد.. 

واشهى من.. 

قطعة سكر.. 

حبك في قلبي.. 

بستان.. 

وربيعه دائم.. 

كم ازهر.. 

ان غبتي.. 

عن عيني يوما.. 

يجتاحني حزن.. 

لا يقهر.. 

ان جاءك صوتي.. 

مكسور.. 

يتعثر.. 

قولي.. 

مشتاق لي.. 

والشوق مميت


.. 

لا اكثر.. 


عمر طه اسماعيل

ليست هناك تعليقات:

إرسال تعليق

( أصنامُ جِلِّقَ ).... سمير موسى الغزالي

 ( أصنامُ جِلِّقَ )بسيط بقلمي : سمير موسى الغزالي هل خضرة السّهل من كفيكَ يارجلُ أمْ زرقةُ الماءِ من عينيكَ تكتحلُ أَمْ أنّكَ البحرُ والأموا...