الثلاثاء، 25 يونيو 2024

اما زلتي تحبيني بقلم عمر طه اسماعيل

 اما زلتي تحبيني؟ 

سؤال ٌ.. 

كم يقاضيني..  

اما زلتي.. توديني.. 

وبالارواح تفديني..

اما زلتي.. 

كاغنية.. 

لعذب اللحن.. 

تهديني..

فهاك الروح.. 

ضميها..

حنين الروح.. 

يشقيني..

تعالي.. 

واسكني قلبي..

فَمَوْت ٌ.. 

ان تجافيني..

تعالي.. 

كي اعانقك..

لقربك فالتعيديني..

فانا من غيرك.. 

ابقى.. 

وحيدا.. 

من يواسيني..

تعالي.. 

واهدمي سورا..

لبُعد ٍ ٍ.. 

كاد يرديني..

رياح الهجر.. 

موحشة ٌ..

ففكي القيد.. 

ناديني..

عجيب امرك حقا.. 

ابعد العشق.. 

تنسيني.. 

فمن لي غيرك.. 

اهوى..

وانت النور.. 

في عيني..


عمر طه اسماعيل 


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